हरे कृष्ण !

आज के इस लेख में हम सभी देवशयनी एकादशी के बारे में जानने का प्रयास करेंगे।

कब आती है ? और अन्य नाम –

देवशयनी एकादशी को पद्मा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है तथा यह आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आती है जो जून /जुलाई माह में आती है।

देवशयनी एकादशी की कथा का वर्णन कहाँ मिलता है ?

देवशयनी या पद्मा एकादशी के विषय में भविष्योत्तर पुराण में भगवान् श्री कृष्ण और महाराज युधिष्ठिर के संवाद है जिसमे महाराज युधिष्ठिर इस पवित्र दिन के बारे में सब जानने का प्रयत्न करते हैं कि यह कब आती है ? तथा इसके पालन का विधि विधान क्या है ?

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं कि नारद जी ने एक बार अपने पिता ब्रह्मा से पूछा कि,” कृपया मुझे बताइये कि भगवान् विष्णु की प्रसन्नता के लिए इस व्रत का पालन कैसे करूँ ?”

ब्रह्मा जी ने उत्तर दिया ,” इस संसार में एकादशी के व्रत से बड़ा और कोई व्रत नहीं है ,पापकर्मों के फल को नष्ट करने के लिए यह अनिवार्य व्रत है तथा जो मनुष्य इस व्रत का पालन नहीं करता वह निश्चित ही नरक में जाता है। भगवान् हृषिकेश को प्रसन्न करने के लिए एकादशी व्रत का पालन करना चाहिए।

देवशयनी एकादशी व्रत कथा-   

एक समय सम्पूर्ण पृथ्वी पर एक सज्जन राजा राज करते थे उनका नाम था राजा मानधाता। राजा मानधाता अपनी प्रजा का संतान की तरह पालन करते थे जिस कारण उनके शासन में कोई रोग कष्ट , सूखा इत्यादि नहीं था तथा सभी नागरिक शांति और समृद्धि से अपना जीवन व्यापन करते थे।

एक बार उनके राज्य में लगातार तीन वर्ष तक बारिश नहीं हुयी तथा सभी नागरिक भूख और उद्वेग से प्रभावित हो गए और राजा के पास आकर विनती कर बोले कि ,” हे राजन ! भगवान् तो विश्व रूप में सभी जगह व्याप्त हैं बदल में भी उसी से वर्षा होती है वर्षा से अन्न उत्पन्न होता है किन्तु आज सभी कष्ट में हैं कुछ उपाय कीजिये । ”

राजा ने उत्तर दिया कि , ” आपके वचन सत्य हैं। शास्त्रों के अनुसार राजा के पापों के परिणामस्वरूप प्रजा को कष्ट उठाना पड़ता है यद्यपि मुझे अपना दोष नहीं दिख रहा है किन्तु मैं अपनी प्रजा के लाभ के लिए सभी संभव उपाय करूँगा।

राजा मानधाता अपनी सेना के साथ वन गए तथा वहां ब्रह्माजी के पुत्र अंगीरा ऋषि को मिलकर उन्हें प्रणाम किया और जब अंगीरा ऋषि ने उनके आने का कारण तथा राज्य की कुशलता के बारें में पूछा तो राजा ने उत्तर दिया कि,” हे प्रभु , मैं धर्म के नियमानुसार ही अपने राज्य का पालन करता हूँ , फिर भी बीते तीन वर्षों से मेरे राज्य में वर्षा नहीं हुयी तथा मेरी प्रजा कष्ट में है और मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा कैसे उनकी सहायता करूँ ? कृपा करके मुझे कोई उपाय बताइये।

अंगीरा ऋषि ने उत्तर दिया। “हे राजन ! वर्तमान में सतयुग सर्वश्रेष्ठ युग है लोग परम ब्रह्म के उपासक है और धर्म के चार स्तम्भ विध्यमान हैं केवल ब्राह्मणों को ही इस युग में तपस्या का दायित्व है इसकी अपेक्षा आपके साम्राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है , फलस्वरूप इस अधर्म के कारण आपका राज्य सूखे से कष्ट पा रहा है इसलिए आप इस शूद्र का वध कर सब कुछ ठीक कर सकते हैं।

राजा ने कहा ,”हे महर्षि ! मैं तपस्या में रत किसी निर्दोष व्यक्ति का वध कैसे कर सकता हूँ ?कृपया मुझे कोई और रास्ता बताने की कृपा करें।”

ऋषि ने उत्तर दिया , ” यदि तुम वध नहीं कर सकते तो आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली देवशयनी / पद्मा एकादशी के व्रत का पालन करो इस व्रत के प्रभाव से निश्चित ही आपके राज्य में वर्षा होगी और सब कुछ ठीक हो जायेगा। यह एकादशी सौभाग्य और सिद्धि प्रदान करने वाली है। अपनी समस्त प्रजा के साथ इस व्रत का पालन आपको करना चाहिए।”

राजा ने अंगीरा ऋषि को प्रणाम किया तथा अपने महल में वापिस आ गए तत्पश्चात आषाढ़ माह में देवशयनी एकादशी का पालन अपनी सम्पूर्ण प्रजा के साथ किया। इस व्रत के प्रभाव से राज्य में सर्वत्र वर्षा हुय। भगवान् हृषिकेश की कृपा से सम्पूर्ण राज्य में अन्न उत्पन्न हो गया तथा फिर से सम्पूर्ण राज्य में खुशहाली फेल गयी।

देवशयनी एकादशी क्यों करनी चाहिए ?

यह एकादशी व्रत पालनकर्ता को सौभाग्य और मुक्ति प्रदान करता है। इस एकादशी की महिमा श्रवण और पठन करने वाले के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
यह एकादशी विष्णु शयना एकादशी भी कहलाती है , क्यूंकि इस व्रत का पालन भकित भगवान् विष्णु कि प्रसन्नता के लिए करते है। वे भौतिक सुख एवं मुक्ति का प्रयास नहीं करते , वे भगवान् कि शुद्धा भक्ति कि प्रार्थना करते हैं। भक्तगण इसी दिन से चतुर्मास व्रत का पालन श्रवण कीर्तन में रत रहकर करते हैं , जब भगवान् हरी शयन के लिए जाते हैं और उत्थाना एकादशी तक भगवान् जागते हैं।

यह था मेरी तरफ से एक प्रयास आप सभी लोगों को इस पवित्र दिन के बारे में जानकारी प्रदान करने का। भगवान् का ध्यान कीजिये और प्रसन्न रहिये।

हरे कृष्ण हरे कृष्ण , कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरेराम हरे राम , राम राम हरे हरे।।

 

 

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