जय नरसिंह देव  !

साथियों आज के इस लेख मे हम नरसिंह भगवान् के बारे में थोड़ा बहुत ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश करेंगे वो भी भगवान् नरसिंह की कृपा से ही।

भगवान् नरसिंह के अवतरण के बारे में तो हम सभी को जानकारी है कि कैसे अपने भक्त प्रह्लाद महाराज के वचनों को सिद्ध करने के लिए कि वह सत्य है अर्थात यह सिद्ध करने के लिए कि परमेश्वर सभी जगह उपस्थित है यहां तक की सभा भवन के खम्भे के भीतर भी हैं पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् श्री हरी ने अपना अभूतपूर्व अद्भुत रूप प्रकट किया यह रूप न तो मनुष्य का था न ही सिंह का , इस प्रकार भगवान् अपने अद्भुत रूप में प्रकट हुए।
इस प्रकार भगवान् नरसिंह देव का प्राकट्य भगवान् का बहुत ही विशेष रूप है ।

आज के लेख में इस कथा से कुछ अलग, हम भगवान् नरसिंह देव के बारे में जानने कि कोशिश करते हैं।

 

एक प्रश्न ये है कि आदि रूप में भगवान् नरसिंह देव रहते कहाँ है ?

तो आपको बता दें की भगवान् नरसिंह देव, नन्द महाराज जी का जो घर है जहाँ भगवान् श्री कृष्ण रहते हैं , उनके आँगन के बाहर जो सिन्ह द्वार है, वहीं नरसिंह भगवान् रहतें हैं अर्थात नरसिंह भगवान् भी बाल गोपाल श्री कृष्ण की लीलाओं का आनंद लेते हैं , यानि कि भगवान् कि लीलाओं का आनंद तो उनके स्वयं के अवतार भी लेते हैं।

इस जगत में नरसिंह भगवान् कैसे आते हैं ?

जब वो इस जगत में आतें हैं तो नरसिंह रूप स्वीकार करते हैं और जिस प्रकार से शास्त्रों में भगवान् श्री रामचंद्र जी का पूर्ण अवतार माना गया है ठीक उसी प्रकार नरसिंह भगवान् का भी पूर्ण अवतार माना गया है।
कुछ पुराणों में यह भी लिखा है कि भगवान् नरसिंह देव भगवान् श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र के अवतार हैं। जिस प्रकार से सुदर्शन चक्र सभी प्रकार के अवरोधों को नष्ट कर देता है उसी प्रकार से नरसिंह भगवान् भी सभी अवरोधों और कठिनाइयों को हरने वाले हैं बल्कि शास्त्र यह भी बतातें है कि जिस प्रकार श्री गणेश जी विघ्नहर्ता हैं, यह विघ्नहर्ता होने की शक्ति उन्हें भगवान् नरसिंह देव से ही प्राप्त होती है तो सभी प्रकार के अवरोधों को दूर करने वाले हैं भगवान् नरसिंह देव।

नरसिंहतापिनी उपनिषद् के अंदर बताया गया है कि किस प्रकार भगवान् नरसिंह देव का यह रूप जो है वो मिला जुला रूप है और 2 अत्युत्तम गुण भगवान् नरसिंह देव के रूप में उपस्थित हैं। वैसे देखा जाये तो किसी भी व्यक्ति के अंदर 2 विपरीत गुण हो ही नहीं सकते लेकिन विपरीत गुण जो साथ में किसी के भी अंदर नहीं हो सकते वो भगवान् नरसिंह देव के अंदर उपस्थित है।
नरसिंहतापिनी उपनिषद् के अंदर एक श्लोक इस प्रकार है –

उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुख।
नरसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहं।।

इस ही श्लोक का एक अन्य रूप और है  –

उग्रं अनुग्रं वीरं अवीरं विष्णुं अविष्णुं ज्वलन्तं अजवलन्तं सर्वतोमुखं असर्वतोमुखं।

NARSINH DEV BHAGWAAN

अर्थात उग्र भी हैं हिरण्यकश्यपु के प्रति और सौम्य भी हैं प्रहलाद महाराज के प्रति , बड़े ही प्रेम से अपनी गोद में बैठाकर के वो प्रहलाद महाराज को बहुत ही वात्सल्य भाव से चाट रहें हैं इस रूप में भगवान् प्रेम भी दिखा रहें हैं तो भी चाट करके।

भगवान् नरसिंह देव ने प्रहलाद महाराज के सिर पर इस प्रकार से हाथ रख रखा है कि उनके नाख़ून जो हैं वो बाहर की ओर हैं तथा हम जानते हैं कि शेर का जो पंजा होता है उसका बीच वाला भाग मुलायम होता है और ये वाला भाग भक्तों के लिए है तथा जो दुष्ट हैं उनके लिए नाख़ून इसलिए उग्रं हैं हिरण्यकश्यपु के लिए और सौम्य प्रह्लाद महाराज के लिए।

बताइये और कैसे हैं नरसिंह देव भगवान् , हम बतातें हैं –
वीरं अर्थात अत्यंत ही साहसिक हैं हिरण्यकश्यपु के लिए। जब हिरण्यकश्यपु ने भगवान् नरसिंह देव की दहाड़ सुनी तब वो ऊपर से नीचे तक हिल गया , हालत ख़राब हो गयी किन्तु अवीरं हैं प्रहलाद महाराज के लिए अत्यंत ही कोमल और प्रेम भाव वाले।

विष्णुं अर्थात भगवान् ने हिरण्यकश्यपु को मारने के लिए बहुत ही विकराल रूप लिया था इतना अधिक विकराल की जो हिरण्यकश्यपु है उसका आसन ही 275 फ़ीट लम्बा था , इतना बड़ा किन्तु जो भगवान् नरसिंह देव हैं वो इससे भी अधिक विकराल हैं इतने अधिक विकराल की जब बीच में भगवान् नरसिंह देव ने हिरण्यकश्यपु पर प्रहार किया तो वो भगवान् नरसिंह देव के नाख़ून में आ गया तथा भगवान् उन्हें यहां वहां देख रहे हैं की कहाँ गया हिरण्यकश्यपु जबकि वो उन्ही के नाख़ून में था , तो विष्णुं लेकिन अविष्णुं किसके लिए हैं प्रह्लाद महाराज के लिए। तो प्रह्लाद महाराज के लिए भगवान् ने अपना छोटा रूप भी ले लिया ताकि भगवान् प्रहलाद महाराज को गोद में बैठा सके तो अविष्णुं भक्तों के लिए , प्रह्लाद महाराज के लिए ।

ज्वलन्तं हिरण्यकश्यपु के लिए और अजवलन्तं प्रहलाद महाराज के लिए।

सर्वतोमुखं , यहाँ वहां सभी दिशाओं में भगवान् देखते हैं और किसे ढूँढ रहे हैं – हिरण्यकश्यपु को लेकिन प्रहलाद महाराज के लिए असर्वतोमुखं , उनको गोद में बैठा कर के उन्हें देख रहे हैं उनका आलिंगन कर रहे हैं , उन्हें निहार रहे हैं।

तो ऐसे विरोधाभास गुण इस जगत में किसी भी व्यक्तिके अंदर नहीं हो सकते किन्तु भगवान् नरसिंह देव में है।

 

नाट्यशास्त्र के रचयिता भरतमुनि है तथा उन्होंने ये नाट्यशास्त्र कश्मीर में लिखा और नाट्यशास्त्र के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपनी दोनों आँखों में अलग अलग भाव नहीं ला सकता अर्थात यदि क्रोध होगा तो दोनों आँखों में होगा तथा ऐसे ही आंसू भी दोनों आँखों में ही आएंगे अर्थात सामान ही भाव होगा चाहे कितना भी अच्छा कलाकार क्यों न हो किन्तु भगवान् नरसिंह देव तो सभी से परे हैं उनकी एक आँख जहाँ हिरण्यकश्यपु को देख रही है जिसमे अत्यंत ही क्रोध है , गुस्से से लाल बड़ी बड़ी आँख तथा वहीँ दूसरी आँख से प्रहलाद महाराज को देख रहे हैं जिसमे बहुत अधिक सौम्यता है , आंसू हैं और प्रहलाद महाराज को निहार रहें हैं की मेरे इस भक्त ने कितना कुछ सहा है , कितने कष्ट देखें हैं , तो दोनों आँखों में अलग अलग भाव ये तो केवल भगवान् ही कर सकते हैं इसलिए भगवान् ने इतना अद्भुत रूप लिया है ,जो इस जगत में कोई नहीं कर सकता।
और क्या अद्भुत है भगवान् में, भगवान् नरसिंह देव के जो कर हैं वो कमल के समान कोमल हैं जबकि हिरण्यकश्यपु जो है वो अत्यंत ही कठोर है और कोमल ने कठोर को चीर दिया फाड़ दिया अद्भुत संगम, ऐसा कैसे हो गया लेकिन भगवान् के नाख़ून जो अत्यंत कठोर हे वो उनके कर कमलों में हैं।
भगवान् ने अपना यह अद्भुद रूप अपने भक्त प्रहलाद महाराज के लिए लिया है तथा जो कुछ लोग बोलते हैं की भगवान् हमेशा उच्च कुल में ही जन्म क्यों लेते हैं, तो बताइये जरा की खम्भा कौनसा कुल है , भगवान् तो खम्भा फाड़ के प्रकट हो गए तो भगवान् सभी प्रकार के सामाजिक मान्यताओं जैसे ऊँचा कुल, नीचाँ कुल इन सबसे परे हैं वो कहीं से भी आ सकतें हैं।
सत्यं विधातुं निज-भृत्य भाषितुं … का एक मतलब यह भी है की वैसे तो भगवान् सभी जगह उपस्थित थे फिर भी भगवान् व्यक्तिगत रूप से खंभे के अंदर थे तथा विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर प्रभु जी बोलतें हैं की वास्तव में भगवान् नरसिंह देव खम्भे के पीछे से झांककर देख रहे थे की कहाँ पर प्रहलाद महाराज बोलेंगे की हाँ भगवान् इस खम्भे में हैं और भगवान् वहां भागकर आ जायेंगे अतः भगवान् सभी ओर उपस्थित भी हैं और व्यक्तिगत भी हैं।
भगवान् कहीं से भी प्रकट हो सकतें हैं। भगवान् संसार में हैं किन्तु सांसारिक नहीं होते, सम्पूर्ण जगत में व्याप्त हैं।

क्या आप जानते हैं की इस ही प्रकार की लीला भगवान् ने और कब की ? यहाँ जानें :-

 

भगवान् नरसिंह देव एक अद्भुत रूप – भाग 2

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