जय नरसिंह देव !
आज के इस लेख में हम भगवान् नरसिंह देव से जुड़े कुछ अन्य प्रसंगों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे, क्यूंकि ऐसा नहीं है कि भगवान् नरसिंह देव हमेशा खम्भे से ही प्रकट होंगे। भगवान् तो कहीं से भी प्रकट हो सकते हैं, आइये विस्तार से इसकी जानकारी प्राप्त करें।
श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी जी की कथा –
एक बार श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी जी ने नरसिंह भगवान् की लीला को याद कर भगवान् से कहा कि, भगवान् ! जब प्रहलाद महाराज ने पुकारा तब आप खम्भे से भी प्रकट हो गए थे, तो फिर मेरे पास तो शिलायें हैं , शालिग्राम शिलायें जो स्वयं ही विष्णु जी हैं , आप तो इनसे भी प्रकट हो सकते हो, और फिर श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी जी ने जिद पकड़ ली कि आप इनमें से ही आजाओ , भगवान् अब सब लोग तो आपका अच्छा अच्छा श्रृंगार करते हैं , मैं कैसे आपका श्रृंगार करूँ , कैसे सजाऊँ , कैसे अच्छे अच्छे वस्त्र पहनाऊं आपको , तब भगवान् ने सोचा कि मेरे इस भक्त को दर्शन देने ही पड़ेंगे इतने प्यार से बुला रहा है मुझे, फिर उनमे से जो एक मुख्य शिला थी तब भगवान् उस शिला में से श्री राधारमणजी के रूप में प्रकट हुए तथा ये नरसिंह चतुर्दशी का ही उत्सव था जब भगवान् ने राधारमण जी के रूप में प्रकट होकर दर्शन दिए।
अब ऐसा भी नहीं है कि भगवान् हमेशा खम्भे में से ही प्रकट होंगे। पुराणों में एक और संस्करण भी आता है कि भगवान् ब्रह्ममुहूर्त में प्रकट हुए तथा ब्रह्ममुहूर्त में प्रकट होकर भगवान् घूमते रहे तथा देख रहे थे कि ये हिरण्यकश्यपु का महल है , मेरा भक्त प्रहलाद कहाँ पर है ये देख रहे थे और फिर जब घूमते घूमते जैसे ही संध्या बेला आयी, वैसे ही प्रकट होकर हिरण्यकश्यपु का वध कर दिया अतः भगवान् को आना है तो कहीं से भी आ सकते हैं।
विश्वक सेन कि कथा –
भगवान् नरसिंह देव के एक भक्त थे जिनका नाम था विश्वक सेन। एक दिन इनके सामने गावं के मंदिर के बड़े पुजारी आये और आकर बोलै कि मेरा स्वस्थ्य आज ठीक नहीं है तो आप भगवान् शिव जी की पूजा कर दीजिये तब विश्वक सेन जी बोले कि में पूजा कर देता मुझे कोई परेशानी नहीं है किन्तु मुझे भगवान् नारायण जी की पूजा के लिए जाना है लेकिन पंडित जी नहीं माने कि आपको पूजा करनी पड़ेगी, तो विश्वक सेन जी ने पूजा शुरू कर दी परन्तु उन्होंने भगवान् नारायण जी की पूजा उपासना शुरू की, यह मानते हुए कि शिव जी जो हैं वो भगवान् नारायण के ही गुणावतार हैं , तो जब ऐसी पूजा उपासना वो कर रहे थे तो जो पंडितजी थे, उन्होंने सुन लिया और वे बोले कि तुम दूध तो भगवान् शिव को चढ़ा रहे हो और नाम भगवान् विष्णु का ले रहे हो ऐसा कहते हुए उन्होंने तलवार निकाल ली और वो विश्वक सेन जी को मारने ही वाले थे तो उस समय विश्वक सेन जी ने भगवान् नरसिंह देव का स्मरण किया और भगवान् नरसिंह देव शिवलिंग में से निकल कर आये और आगे कहने की आवश्यकता नहीं है फिर भी बता देते हैं कि भगवान् नरसिंह देव ने उसी समय अपने भक्त के लिए उस पुजारी को इस संसार से मुक्त कर दिया।
अर्थात भगवान् तो शिवलिंग से भी प्रकट हो सकते हैं।
ऐसी ही एक और कथा भी आती है जो पुराणों में ही दी हुयी है।
मूषक दैत्य की कथा –
एक ऋषि थे उनका नाम था उद्दंग ऋषि जिनकी एक पुत्री थी मालती, अत्यंत ही सुन्दर कन्या थी। अब ये हम बात कर रहे हैं त्रैता युग की और हम जानते हैं कि त्रैता युग में बदमाशी का काम था रावण के पास अर्ताथ रावण अत्यंत ही चरित्रहीन था और उसने सभी जगह हाहाकार मचाया हुआ था। एक दिन रावण की दृष्टि मालती के ऊपर पड़ गयी और रावण ने उसके साथ दुर्व्यवहार कर उसे गोदावरी नदी में फेंक दिया। मालती घायल अवस्था में बहते हुए एक मूषक को दिख गयी, उस मूषक का नाम था इंदूरा मूषक उसने मालती को बाहर निकाला और थोड़ी सेवा की फिर जब मालती को होश आया और थोड़ी बातचीत हुयी तो इंदूरा मूषक उससे मोहित हो गया और उसने मालती से कहा कि मैं ठीक तो तुम्हे पूरा कर दूंगा किन्तु तुम्हे मेरे साथ रहना होगा तब मालती को उसकी बात माननी पड़ी ।
अब मालती की कोख में 2 लोगो का बीज था एक तो रावण का और दूसरा इंदूरा मूषक का और उससे प्रकट हुआ एक राक्षस मूषक दैत्य। हिरण्यकश्यपु की तरह ही एक अन्य रूप मान सकते हैं मूषक दैत्य को, उसने भी भगवान शिव को प्रसन्न किया और वरदान माँगा कि मैं किसी से ना मरुँ तो भगवान् ने कहा कि ऐसा तो नहीं हो सकता कुछ तो माँगना ही होगा तो फिर मूषक दैत्य ने कहा तो ठीक है मैं भगवान् नरसिंह देव से मरुँ, उसने सोचा कि नरसिंह देव तो सतयुग में आकर चले गए अब कहाँ आएंगे तो मैं हमेशा जीवित ही रहूँगा, शिव जी ने आशीर्वाद दे दिया और चले गए। अब ये जो मूषक दैत्य है इसमें इंदूरा की शक्ति भी है और रावण की शक्ति भी है तो ये अत्यंत ही शक्तिशाली है, तो फिर इसे कौन मारेगा अब ये बात जब भगवान् श्री राम को पता चली तो उन्होंने कहा की ठीक है क्यूंकि ये मूषक दैत्य है और मूषक को कौन मारता है बिलौटा अर्थात मार्जार तो भगवान् रामचंद्र जी ने नरसिंह भगवान् का एक विशेष रूप लिया जिसे मार्जार नरसिंह बोलते हैं जिसमे चेहरा तो मार्जार का है और शरीर सिंह का है। अब मूषक दैत्य भागा और भगवान् उसके पीछे, तो मूषक दैत्य जो है वो गंधमाधन पर्वत पर जा कर छुप गया फिर भगवान् नरसिंह ने उसकी बाहर प्रतीक्षा की और जब वो बाहर निकला तो भगवान् ने उसे पकड़ लिया और खींच करके भगवान् ने उसके साथ खेल खेल कर उसे मारा।
अर्थात भगवान् को जब भी जिस रूप में भी किसी का वध करना है वो कर सकते हैं। भगवान् कैसे भी आ सकते हैं वो खम्भे से भी आ सकते हैं,शिवलिंग से भी प्रकट हो सकते हैं,ब्रह्ममुहूर्त में भी आ सकते हैं और भगवान् चाहे तो श्रीरामचन्द्र जी के रूप में मार्जार नरसिंह देव के रूप में भी आ सकते हैं।
और कैसे आ सकते हैं भगवान् – भगवान् महाप्रभु कि लीलाओं में स्वयं श्री गौरांग महाप्रभु भी नरसिंह देव के रूप में आ सकते हैं।
तो ये थी भगवान् श्री नरसिंह देव जी के प्राकट्य से जुडी कुछ छोटी सी जानकारी।।